एक रोचक कहानी: क्या मुझमे सिर्फ बुराइयाँ ही बुराइयाँ है? कोई अच्छाइयाँ नहीं?

motivational short story hindi
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A motivational short story Hindi

“जानें क्या हो गया है आज कल के बच्चों को, जब देखो तब मुंह फुलाए बैठे रहते हैं”। ये कहते हुए मालती जी  किचन से चाय का एक कप लेकर अपने बेटे अमन के कमरे की ओर चली जहां अमन किसी ख्याल में डूबा हुआ खिड़की से  बाहर देख रहा था। 

अमन अपनी पॉकेट से सिगरेट निकाल ही रहा होता है कि  मां की आवाज़  सुनकर उसे पॉकेट में और अंदर की ओर धकेल देता है।

“क्या हुआ बेटा” मालती जी ने अपने बेटे के गुमसुम चेहरे को देखकर बहुत ही प्यार से पूछा। वो अपने बेटे का ये रवैया पिछले दो दिन से देख रही थीं और इन दो दिनों ना जाने कितने बार उससे ये सवाल पूछ चुकी थीं।

“कुछ नहीं, मां। मैं ठीक हूं और प्लीस ये पूछना बंद करो। मैं कोई छोटा बच्चा नहीं हूं।“ अमन ने थोड़ा इर्रिटेट होते हुआ कहा।

यह सुनकर मालती जी थोड़ा सैड होकर चाय का कप रखते हुए कहा, चाय ठंडी होने से पहले पी लेना और चुपचाप वहां से चलीं गई। 

मां को यूं जाता देखकर अमन को तुरंत ये एहसास हुआ कि उसे मां से ऐसे बात नहीं करनी चाहिए थी। वो ये सोचते हुए उधर देख ही रहा था कि बगल से कुछ गिरने की आवाज़ आई। उसने झांककर देखा कि उसके पापा एक बड़ा सा पत्थर गाड़ी से उतरवा कर हाथ झाड़ रहे हैं।

“फिर वही खटखट” कहकर इर्रिटेट होते  हुए अमन अपना चाय का कप लेकर छत चला गया और उन ख्यालों में फिर डूब गया जिन्होंने उसे दो दिन  से गुमसुम बना दिया था।

रोशनी की ये बात कि “तुम्हारे अंदर अच्छाई ही क्या है कि में तुम्हारे साथ रहूं। तुम हर वक़्त गुस्से में रहते हो और बस मुझ पर चिल्लाते हो। वो भी सब के सामने।“ अमन के जेहन में बार बार गूंज रही थी।

अमन को रोशनी से ब्रेक अप का भी उतना दुख नहीं था जितना की इस बात का था कि सब उससे इसी एक वजह से दूर हो रहें हैं।

उसने अपने दो दोस्त पहले ही अपने गुस्सैल नेचर के  कारण खो दिए थे। लेकिन आज रोशनी की बात से अमन कुछ ज्यादा ही हर्ट हुआ था। आज वो  खुद से खुद के अच्छे या बुरे होने पर सवाल-जवाब कर रहा था।

इससे पहले कि वो अपने माइंड  मे  चल रहे सवाल-जवाब में अपनी कुछ सफाई दे पाता, उसकी बहन मानसी की आवाज़ उसके कानो पे पड़ी, जो उसे विचारों के सागर से खींचकर वस्विकता पे लाई । मानसी गुस्से में चिल्ला रही थी 

वो जैसे ही छत से उतरकर नीचे पंहुचा, मानसी गुस्से में बोली  –

“तुम मेरा मोबाइल चार्ज से निकालकर हमेशा अपना क्यों लगा देते हो?

“ क्योंकि चार्जर मेरा है।“ अमन ने भी उसी टोन मे जवाब दिया।

“तो मेरा चार्जर किसने तोड़ा” मानसी ने फिर गुस्से से पूछा। 

इसी बात पर दोनों झगड़ने लगे। दोनों की तेज आवाज सुनकर उनके पापा मम्मी भी इसी कमरे में पहुंच गए ।

अमन तू इतना बड़ा होकर भी बच्चों की तरह झगड़ रहा है? पापा ने थोड़ी तेज़ आवाज़ में कहा में कहा ।

पापा की बात सुनकर अमन चिल्ला उठा “हां, बुरा तो मै ही हूं। बुराइयां ही बुराइयां है मुझमें”। अच्छाइयां तो हैं ही नहीं।“ अमन की आवाज़ मे दर्द था। शायद वो दर्द जिसने उसे दो दिन गुमसुम कर रखा था। और गुस्से में वो दर्द उसकी जुबां पे आ ही गया. इतना कहकर वो वहां से चला गया

मम्मी, पापा और मानसी उसकी बात सुनकर दंग  रह गए। उसके पापा उसे  जाते हुए देखते रहे और उसकी कही हुई बात सोचते रहे। 

सुबह ‘खटखट’ की आवाज़ ने अमन की नींद खोली। उसने आँख मींजते हुए खिड़की से देखा तो उसके पापा अपने मूर्ति बनाने के काम में लग चुके थे। और बड़े ध्यान से पत्थर काट रहे थे।

वैसे तो अमन को इस आवाज़ से आमतौर पर गुस्सा नहीं आता क्योंकि ये उसके पापा का पेशा है । लेकिन जब वो गुस्सा में होता है, तब ये आवाज़ उस और बहुत गुस्सा दिलाती है ।

एक तो दिमाग पहले से खराब ऊपर से ये इरिटेटिंग आवाज़,  अपने आप से ये कहते हुए वो उठा और पल पर में तैयार होकर ऑफिस निकल गया ये सोचते हुए की कल से जल्दी उठकर जल्दी निकुलंगा और घर लेट आऊंगा । 

उस दिन से ३-४ उसने यही किया और खुद  को इस इरिटेटिंग आवाज़ से बचा लिया।

पाचंवे दिन शाम को जब वो लौटकर आया और सामने जो देखा, देखकर बस ढंग ही रह गया। सामने रखी मूर्ति की अदभुत सुंदरता तो वो बस देखता ही रहा गया।

आज उसे वो ‘ख़टखट ‘की आवाज़ ने गुस्सा नहीं दिलाया । या यूं कहे की उसे ये आवाज़ सुनाई ही नहीं दी। वो अंदर ना जाकर सीधे वहां चला गया जहां उसके पापा मूर्ति बना रहे थे।

उस मूर्ति को देखकर अमन को विश्वास ही नहीं वो रहा था कि ये वही भारी भरकम पत्थर है जिसे पापा ने ३-४ दिन पहले मंगवाया था। इतनी जल्दी पापा ने उसे इतनी खूबसूरत मूर्ति मे  बदल दिया। आज अमन खुद को पापा की कारीगरी की सराहना करने से रोक नहीं पाया।

उसे यूं सरप्राइज़्ड देखकर उसके पापा ने उससे पूछा “क्या हुआ और तुम यहां” ??

पापा ने उसके यहां होने पर इसलिए अचरज जताया था क्योंकि वो अच्छी तरह जानते थे कि अमन ३-४ से जल्दी क्यों जा रहा था और लेट क्यों आ रहा था।

अमन ने पापा के प्रश्न को नजरंदाज करते हुआ पूछा “पापा, आपने उस भारी पत्थर से इतनी खूबसूरत मूर्ति कैसे बना ली और वो भी इतनी जल्दी? आपके पास तो कोई एडवांस्ड टूल्स भी  नही है।

इस पर अमन के पापा ने जो उत्तर दिया उसने अमन को ही नहीं बल्कि उसके पर्सनालिटी को भी बदल दिया।

उसके पापा ने कहा, “बेटा, खूबसूरती तो इसमें पहले से ही थी। बस छिपी  हुई  थी। मैंने यूज़लेस पोरशन की  काट छांट करके इसकी खूबसूरती को सिर्फ उभार दिया है”।

ये सुनकर अमन कहीं खो सा  गया। शायद उसका ध्यान रोशनी के उस सवाल की ओर चला गया था।

उसे यूं खोया हुआ देखकर उसके पापा उसके कंधे पर हाथ रखकर बोले, “किस दुनिया में खोए रहते हो बेटा। ख्यालों की दुनिया से बाहर निकलो और अपनी अच्छाइयों को निकालो । उन्होंने अमन कि उस दिन वाली बात पे जोर देते हुए कहा, तुम्हारे अंदर बुराइयां ही बुराइयां नहीं बल्कि अच्छाइयाँ ही अच्छाइयाँ है। बस तुम्हे उन्हें  उभारना  है। ठीक इस  मूर्ति की तरह। अपने गुस्सा और दूसरी बुराइयां का थोड़ा काट छांट कर दो। तुम खुद ब खुद एक बेहतर इंसान बन जाओगे। और हैं ये करने के लिए तुम्हे ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा और ना ही किसी एडवांस्ड टूल  की जरूरत होगी।

अमन बस स्तब्ध खड़ा  पापा की बातों को सुन रहा था और अपने दिल पर उतार रहा था।।

आज उसे अपने दिमाग में हफ्तों से चल रहे सारे सवालों के जवाब मिल गए थे और वो बस मूर्तिवत खड़ा उस  मूर्ति को देखते हुए अपने पापा के हाथ की कारीगरी और दिमाग के सूझबूझ की तारीफ कर रहा था।

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